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रहस्य है कैलाश मंदिर का शिवलिंग, दरवाजे से बड़ा होने के बावजूद हुआ स्थापित....

रहस्य है कैलाश मंदिर का शिवलिंग, दरवाजे से बड़ा होने के बावजूद हुआ स्थापित....


कानपुर .... यूं तो शहर में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं पर शिवाला स्थित कैलाश मंदिर आस्था, रहस्य और विशेषताओं से भरा हुआ है। सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर में सात फीट लंबा और पांच फीट ऊंचा शिवलिंग हैै। यानी यह उस दरवाजे से भी बड़ा है, जिस देवालय में इसे स्थापित किया गया है। शिवलिंग का व्यास इतना है कि दोनों हाथों से कोई अंगीकार नहीं कर सकता। दावा है कि ये उत्तर भारत का यह सबसे विशाल शिवलिंग है। 151 साल पहले मंदिर का निर्माण महाराज गुरु प्रसाद शुक्ला ने कराया था। मान्यता है कि नियमित 21 सोमवार जल चढ़ाने से सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं।


शिवलिंग स्थापित होने का रहस्य :

मंदिर का निर्माण 1869 में हुआ। इसका शिवलिंग उन्नाव में तैयार कराया गया। जब शिवलिंग को कानपुर ला रहे थे तब गंगा जी बहुत बढ़ी हुई थीं। 

पानी घटने में छह महीने लग गए। इसकेबाद सरसैया घाट के रास्ते जब तक शिवलिंग को मंदिर तक लाया जाता, तब तक एक वर्ष बीत गया। इस दौरान मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका था। तब चूक ये हो गई कि स्थापना वाले कमरे का निर्माण करते समय शिवलिंग के आकार का ध्यान नहीं रखा गया, जिससे दरवाजा छोटा रह गया। पुजारियों ने जब ये समस्या से गुरुप्रसाद को बताई तो वह निराश हो गए। वह दरवाजे को तुड़वाना नहीं चाहते थे। उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया। एक महीने से ज्यादा का वक्त बीत गया। शिवलिंग मंदिर परिसर में रखा रहा। तभी शंकराचार्य कानपुर आए। उन्हें समस्या बताई गई तो शंकराचार्य ने हवन शुरू कर दिया। मंदिर के सभी पट बंद कर दिए गए। तीन दिन बाद ही गुरु प्रसाद को सपना आया। सुबह जब मंदिर के पट खोले गए तो वहां शिवलिंग स्वयं स्थापित था। यह देख सभी अचंभित रह गए।


मूंगे के बने हैं हनुमान और भैरव जी :

परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर भी बने हैं। इसमें से दो मंदिरों में हनुमान और भैरव जी की मूर्तियां हैं, जो मूंगे से बनी हैं। मूंगा लाल होने की वजह से हनुमान जी की मूर्ति में बंदन नहीं लगा है। टीका लगाने के लिए अलग से गदा में बंदन लगाया गया है। 


एक बार खुलता है दशानन का मंदिर :

कैलाश मंदिर परिसर में रावण का भी मंदिर है। यह साल भर में सिर्फ एक बार विजयादशमी को ही खुलता है। सब लोग जब रावण वध का उत्साह मनाते हैं तब यहां पर लंकापति की पूजा होती है। सरसों के तेल के दीये जलाए जाते हैं। आस्था है कि रावण के दर्शन से बुरे विचारों का वध हो जाता है। यूपी में रावण का यह इकलौता मंदिर है। रावण भगवान शिव का परमभक्त था। इसीलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।


पूरे शिवलिंग की कर सकते हैं परिक्रमा मंदिर की खासियत है कि पूरे शिवलिंग की परिक्रमा आसानी से कर सकते हैं। अन्य शिवालयों की तरह नंदी की मूर्ति बीच में नहीं पड़ती है। शिव व नंदी के मुख आमने-सामने नहीं हैं। शिवजी के दर्शन तीन दरवाजों से होते हैं। मंदिर में किसी का भी मुख दक्षिण की ओर नहीं है।


    कानपुर से राजीव वर्मा की रिपोर्ट...

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