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हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल: जाजमऊ में हजरत मखदूम शाह आला का 767वां उर्स शुरू, पांच लाख से अधिक अकीदतमंदों के पहुंचने की उम्मीद...



 #कानपुर नगर 



*हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल: जाजमऊ में हजरत मखदूम शाह आला का 767वां उर्स शुरू, पांच लाख से अधिक अकीदतमंदों के पहुंचने की उम्मीद*




*कानपुर से न्यूज़ इंडिया नेटवर्क ब्यूरो राजीव वर्मा की रिपोर्ट*



कानपुर। गंगा किनारे बसे कानपुर के जाजमऊ इलाके का ऐतिहासिक टीला आज फिर से अकीदतमंदों की भीड़ से गुलजार हो गया। यहां स्थित हजरत मखदूम शाह आला रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर शुक्रवार को 767वां उर्स कुल शरीफ का आगाज हुआ। यह दरगाह केवल मुस्लिम समाज के लिए ही नहीं बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल के तौर पर भी जानी जाती है। अनुमान है कि इस बार के उर्स में देश के कोने-कोने से करीब पांच लाख लोग पहुंचेंगे।


*मुगलकालीन इतिहास से जुड़ी दरगाह*


जाजमऊ की यह दरगाह लगभग 700 साल पुरानी मानी जाती है। इतिहासकार बताते हैं कि इसे फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था, जिसके दो शिलालेख आज भी यहां मौजूद हैं। माना जाता है कि हजरत मखदूम शाह आला बगदाद में तालीम हासिल करने के बाद भारत आए और कानपुर में बस गए। लगभग 60 साल तक वे जाजमऊ में रहकर लोगों की सेवा व मार्गदर्शन करते रहे। उस दौर में कानपुर महज एक छोटा सा गांव और जाजमऊ एक तहसील हुआ करता था।


*नीम की मीठी पत्तियों का चमत्कार*


उर्स कुल शरीफ की सबसे बड़ी विशेषता दरगाह के आंगन में लगे सैकड़ों साल पुराने नीम के पेड़ से जुड़ी है। मान्यता है कि कुल शरीफ की रस्म पूरी होने के बाद कुछ समय के लिए इस नीम की पत्तियां मीठी हो जाती हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि उस समय इन पत्तियों को खाने से रोग-कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही वजह है कि उर्स के दिन लाखों लोग इस परंपरा का हिस्सा बनने यहां पहुंचते हैं।


*अटूट आस्था और भीड़ का सैलाब*


स्थानीय निवासी मोहम्मद फारूख बताते हैं कि उर्स के मौके पर यहां आस्था का ऐसा संगम देखने को मिलता है, जहां हिंदू-मुस्लिम सभी समुदायों के लोग शामिल होकर एक साथ दुआ करते हैं। उनका कहना है कि जो भी यहां आता है, उसकी मुराद पूरी होती है और जीवन की परेशानियां दूर होती हैं।


*सामाजिक संदेश का मंच*


उर्स केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामाजिक सद्भाव का भी बड़ा पैगाम देता है। दरगाह से हर साल लाखों लोगों को आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश दिया जाता है। भीड़ के बावजूद यहां सुरक्षा और व्यवस्थाओं के कड़े इंतजाम किए गए हैं।


कानपुर का यह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल आज भी गंगा-जमुनी तहजीब की सबसे बड़ी निशानी बना हुआ है। 767वें उर्स कुल शरीफ के मौके पर एक बार फिर यहां की फिजा अकीदत, आस्था और मोहब्बत से सराबोर हो उठी है।


आकांक्षा पांडे 

 एसीपी कैंट ☝️

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